Friday, 24 July 2015

'खतरनाक है यादव सिंह और सत्ता का गठजोड़'

यादव सिंह मामले की सीबीआई जांच के लिए दायर याचिका में बताया गया कि यादव सिंह पर जनवरी 2012 में दर्ज मुकदमे की जांच सीबी-सीआईडी को सौंपी गई तो एजेंसी ने कड़ाई से जांच शुरू की।

वह यादव सिंह के खिलाफ इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस तक जारी करवा चुकी थी, ताकि वह विदेश न भाग जाए। अचानक चंद महीनों में ही नाटकीय ढंग से सब कुछ बदल गया।

राजनीतिक गलियारों में इसे मौजूदा प्रदेश सरकार के खास नेताओं और यादव सिंह के बीच ‘कोई समझौता’ बताया गया।छापेमारी की कार्रवाई के बाद आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और सुप्रीम कोर्ट द्वारा काले धन की जांच के लिए बनाई गई एसआईटी ने जांच शुरू की।

25 फरवरी, 2015 को केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने यूपी के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर यादव सिंह से संबंधित सभी दस्तावेज व सामग्री सीबीआई निदेशक को सौंपने को कहा।

प्रदेश सरकार ने इसका जवाब छह अप्रैल को दिया। कहा, मामले की जांच के लिए यूपी सरकार जस्टिस अमरनाथ वर्मा कमीशन बना चुकी है। 

यह भी कहा कि हाईकोर्ट में भी सीबीआई जांच की मांग को लेकर याचिका पर सुनवाई चल रही है। इसी आधार पर निर्णय लिया जाएगा।सीबीआई जांच का फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार को जब सीबीआई निदेशक को जांच सौंपने के लिए कहा तो प्रदेश सरकार ने जस्टिस वर्मा कमेटी बनाने का बहाना दे दिया जो उसने 10 फरवरी 2015 को ही बनाई है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही काले धन की जांच के लिए एसआईटी बनाई गई है। सर्वोच्च अदालत के आदेश केंद्र हो या राज्य सभी के लिए मान्य होते हैं।

हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह के आरोप हैं कि राजनेताओं से करीबी के चलते उसे बचाया जा रहा है। ये राजनेता मौजूदा व पूर्व सरकार से जुड़े हैं। 

इस समय उनके नाम कोर्ट जारी नहीं कर सकती, लेकिन यादव सिंह, उसके परिवार और एसोसिएट का इनसे संबंध होना बेहद गंभीर आरोप है।

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