पीजीआई के डॉक्टर्स ने एक 'चमत्कार' करते हुए मासूम को नई जिंदगी दी। डॉक्टर्स को इस काम के बारे में जानकर आप भी उन्हें सलाम करेंगे। यह चमत्कार रोहतक पीजीआई शिशु रोग विशेषज्ञों ने किया। उन्होंने एक ऐसे बच्चे की जान बचाई, जिसकी आंतें पेट से बाहर थीं।
डॉक्टर ने बच्चे को बिना बेहोश किए 5 मिनट में उसका सफल ऑपरेशन कर दिया। बच्चा अभी यहां नीकू में दाखिल है और उसकी हालत में सुधार बताया जा रहा है।
बच्चे की मौसी ऊषा ने बताया कि उसकी बहन चित्रा ने बृहस्पतिवार को पानीपत के सिविल अस्पताल में सुबह चार बजे बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के पेट से भी आंतें बाहर निकली हुई थीं।
वहां से उसे पीजीआई रोहतक रेफर कर दिया गया। सुबह 8 बजे यहां लेकर आए और यहां डॉ. के. एन. रतन ने इलाज शुरू किया। जांच के बाद शुक्रवार को उसका ऑपरेशन किया गया। डॉ. रतन के मुताबिक बच्चों को ऐसी समस्या तीन माह के गर्भ के बाद गर्भवती द्वारा खाने पीने में लापरवाही बरतने से होती है। इसे गेस्ट्रोइकॉइसिस कहा जाता है। इस मामले में सारी आंतें बच्चे के पेट से बाहर आईं हुईं थी।
ऑपरेशन में चुनौती यह थी कि बच्चे का जन्म महज एक दिन पहले हुआ है। उसका वजन भी मात्र डेढ़ किलो है। बेहोश करने में रिस्क था। इसलिए मैनुअल रिडक्शन किया गया।
इस प्रक्रिया में बच्चे को बगैर एनेस्थेसिया दिए ही उसकी आंतों को पेट के अंदर किया गया। इस ऑपरेशन में महज पांच मिनट लगे हैं।
डॉक्टर ने बच्चे को बिना बेहोश किए 5 मिनट में उसका सफल ऑपरेशन कर दिया। बच्चा अभी यहां नीकू में दाखिल है और उसकी हालत में सुधार बताया जा रहा है।
बच्चे की मौसी ऊषा ने बताया कि उसकी बहन चित्रा ने बृहस्पतिवार को पानीपत के सिविल अस्पताल में सुबह चार बजे बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के पेट से भी आंतें बाहर निकली हुई थीं।
वहां से उसे पीजीआई रोहतक रेफर कर दिया गया। सुबह 8 बजे यहां लेकर आए और यहां डॉ. के. एन. रतन ने इलाज शुरू किया। जांच के बाद शुक्रवार को उसका ऑपरेशन किया गया। डॉ. रतन के मुताबिक बच्चों को ऐसी समस्या तीन माह के गर्भ के बाद गर्भवती द्वारा खाने पीने में लापरवाही बरतने से होती है। इसे गेस्ट्रोइकॉइसिस कहा जाता है। इस मामले में सारी आंतें बच्चे के पेट से बाहर आईं हुईं थी।
ऑपरेशन में चुनौती यह थी कि बच्चे का जन्म महज एक दिन पहले हुआ है। उसका वजन भी मात्र डेढ़ किलो है। बेहोश करने में रिस्क था। इसलिए मैनुअल रिडक्शन किया गया।
इस प्रक्रिया में बच्चे को बगैर एनेस्थेसिया दिए ही उसकी आंतों को पेट के अंदर किया गया। इस ऑपरेशन में महज पांच मिनट लगे हैं।
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