अपनी दमदार आवाज़, डरावने गेटअप और प्रभावशाली शख्सियत से सालों तक फिल्मप्रेमियों के दिलों में ख़ौफ़ पैदा करने वाले जाने-माने खलनायक अमरीश पुरी दरअसल फिल्मों में हीरो बनना चाहते थे. 22 जून को उनका 83वां जन्मदिन है. इस मौके पर ऐसी ही कई दिलचस्प बातों को बीबीसी के साथ साझा किया उनके बेटे राजीव पुरी ने.
अमरीश पुरी ने 30 साल से भी ज़्यादा वक़्त तक फ़िल्मों में काम किया और नकारात्मक भूमिकाओं को इस प्रभावी ढंग से निभाया कि हिंदी फ़िल्मों में वो बुरे आदमी का पर्याय बन गए.
अपने पिता के बारे में राजीव पुरी बताते हैं, "पापा जवानी के दिनों में हीरो बनने मुंबई पहुंचे. उनके बड़े भाई मदन पुरी पहले से फिल्मों में थे. लेकिन निर्माताओं ने उनसे कहा कि तुम्हारा चेहरा हीरो की तरह नहीं है. उससे वो काफी निराश हो गए थे."
नायक के बतौर अस्वीकार कर दिए जाने के बाद अमरीश पुरी ने थिएटर में अभिनय शुरू कर दिया और वहां खूब ख्याति पाई. इसके बाद 1970 में उन्होंने फ़िल्मों में काम करना शुरू किया.पापा जवानी के दिनों में हीरो बनने मुंबई पहुंचे. उनके बड़े भाई मदन पुरी पहले से ही फिल्मों में थे. लेकिन निर्माताओं ने उनसे कहा कि तुम्हारा चेहरा हीरो की तरह नहीं है. उससे वो काफी निराश हो गए थे.
राजीव ने बताया, "पापा ने फिल्मों में काफी देर से काम शुरू किया. लेकिन एक थिएटर कलाकार के तौर पर वो ख़ासी ख्याति पा चुके थे. हमने तभी से उनकी स्टारडम देख ली थी और हमें पता चल गया था कि वो कितने बड़े कलाकार हैं."
70 के दशक में उन्होंने निशांत, मंथन, भूमिका, आक्रोश जैसी कई फ़िल्में की. 80 के दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई अविस्मरणीय भूमिकाएं निभाईं.हम पांच, नसीब, विधाता, हीरो, अंधा कानून, अर्ध सत्य जैसी फिल्मों में उन्होंने बतौर खलनायक ऐसी छाप छोड़ी कि फिल्म प्रेमियों के मन में उनके नाम से ही ख़ौफ़ पैदा हो जाता था.
साल 1987 में आई मिस्टर इंडिया में उनका किरदार मोगैम्बो बेहद मशहूर हुआ. फिल्म का संवाद 'मोगैम्बो खुश हुआ', आज भी लोगों के जे़हन में बरकरार है.
राजीव पुरी बताते हैं कि असल जीवन में अमरीश पारी बेहद अनुशासनप्रिय और वक़्त के पाबंद इंसान थे.अमरीश पुरी बड़े पर्दे पर बुरे आदमी का पर्याय बन गए थे. वो कहते हैं, "पापा के सिद्धांत बिलकुल स्पष्ट थे. जो बात उन्हें पसंद नहीं आती थी, वो उसे साफ-साफ बोल देते थे. वो हमारे रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ बिलकुल विनम्र रहते. उन्होंने कभी किसी को नहीं जताया कि वो कितने मशहूर हैं."
अमरीश पुरी, श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा के काफी क़रीब थे. युवा कलाकारों में भी उनकी शाहरुख़ ख़ान, आमिर ख़ान और अक्षय कुमार से खासी निकटता थी.
राजीव पुरी बताते हैं, "उन्हें अपने पोते-पोतियों से काफी लगाव था. जब वो उनके साथ होते, तो हमसे कहते-चलो अब तुम लोग जाओ. ये हम बच्चों के खेलने का वक़्त है."
अमरीश पुरी अपने करियर के आखिरी सालों में चरित्र भूमिकाएं करने लगे थे. इसके बाद उन्होंने परदेस, ताल और दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे जैसी फिल्मों में अभिनय की ज़बर्दस्त छाप छोड़ी. 12 जनवरी 2005 को उनका निधन हो गया.
अमरीश पुरी ने 30 साल से भी ज़्यादा वक़्त तक फ़िल्मों में काम किया और नकारात्मक भूमिकाओं को इस प्रभावी ढंग से निभाया कि हिंदी फ़िल्मों में वो बुरे आदमी का पर्याय बन गए.
अपने पिता के बारे में राजीव पुरी बताते हैं, "पापा जवानी के दिनों में हीरो बनने मुंबई पहुंचे. उनके बड़े भाई मदन पुरी पहले से फिल्मों में थे. लेकिन निर्माताओं ने उनसे कहा कि तुम्हारा चेहरा हीरो की तरह नहीं है. उससे वो काफी निराश हो गए थे."
नायक के बतौर अस्वीकार कर दिए जाने के बाद अमरीश पुरी ने थिएटर में अभिनय शुरू कर दिया और वहां खूब ख्याति पाई. इसके बाद 1970 में उन्होंने फ़िल्मों में काम करना शुरू किया.पापा जवानी के दिनों में हीरो बनने मुंबई पहुंचे. उनके बड़े भाई मदन पुरी पहले से ही फिल्मों में थे. लेकिन निर्माताओं ने उनसे कहा कि तुम्हारा चेहरा हीरो की तरह नहीं है. उससे वो काफी निराश हो गए थे.
राजीव ने बताया, "पापा ने फिल्मों में काफी देर से काम शुरू किया. लेकिन एक थिएटर कलाकार के तौर पर वो ख़ासी ख्याति पा चुके थे. हमने तभी से उनकी स्टारडम देख ली थी और हमें पता चल गया था कि वो कितने बड़े कलाकार हैं."
70 के दशक में उन्होंने निशांत, मंथन, भूमिका, आक्रोश जैसी कई फ़िल्में की. 80 के दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई अविस्मरणीय भूमिकाएं निभाईं.हम पांच, नसीब, विधाता, हीरो, अंधा कानून, अर्ध सत्य जैसी फिल्मों में उन्होंने बतौर खलनायक ऐसी छाप छोड़ी कि फिल्म प्रेमियों के मन में उनके नाम से ही ख़ौफ़ पैदा हो जाता था.
साल 1987 में आई मिस्टर इंडिया में उनका किरदार मोगैम्बो बेहद मशहूर हुआ. फिल्म का संवाद 'मोगैम्बो खुश हुआ', आज भी लोगों के जे़हन में बरकरार है.
राजीव पुरी बताते हैं कि असल जीवन में अमरीश पारी बेहद अनुशासनप्रिय और वक़्त के पाबंद इंसान थे.अमरीश पुरी बड़े पर्दे पर बुरे आदमी का पर्याय बन गए थे. वो कहते हैं, "पापा के सिद्धांत बिलकुल स्पष्ट थे. जो बात उन्हें पसंद नहीं आती थी, वो उसे साफ-साफ बोल देते थे. वो हमारे रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ बिलकुल विनम्र रहते. उन्होंने कभी किसी को नहीं जताया कि वो कितने मशहूर हैं."
अमरीश पुरी, श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा के काफी क़रीब थे. युवा कलाकारों में भी उनकी शाहरुख़ ख़ान, आमिर ख़ान और अक्षय कुमार से खासी निकटता थी.
राजीव पुरी बताते हैं, "उन्हें अपने पोते-पोतियों से काफी लगाव था. जब वो उनके साथ होते, तो हमसे कहते-चलो अब तुम लोग जाओ. ये हम बच्चों के खेलने का वक़्त है."
अमरीश पुरी अपने करियर के आखिरी सालों में चरित्र भूमिकाएं करने लगे थे. इसके बाद उन्होंने परदेस, ताल और दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे जैसी फिल्मों में अभिनय की ज़बर्दस्त छाप छोड़ी. 12 जनवरी 2005 को उनका निधन हो गया.
0 comments:
Post a Comment