Sunday, 21 June 2015

रामदेव का 'उत्थान' न होता तो योग का इतना नाम न होता

पिछले 20 वर्षों में सचमुच योग क्रांति हो गई। हरिद्वार से शुरू हुई नव चेतना पूरे संसार तक पहुंची।

यह बात तय है कि यदि योगगुरु के रूप में रामदेव का उत्थान न होता तो योग का इतना नाम न होता। विश्व को पतंजलि के वे दुर्लभ और गूढ़ सूत्र रामदेव के जरिए सहज रूप से प्राप्त हो गए, जो अब तक किताबों में छिपे हुए थे।

प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ में योग दिवस की चर्चा पर भारतीय योग को उच्चतम सोपान पर पहुंचा दिया। इससे पहले ऐसा न हो पाया था। रामदेव से पूर्व धीरेंद्र ब्रह्मचारी, प्रोफेसर एम लाल, स्वामी शिवानंद, स्वामी गणेशानंद, ओमकारानंद, स्वामी विद्यानंद सरस्वती, आयंगर जैसे अनेक योग मनीषियों ने विश्व का परिचय योग से कराया। भारत से गया योग पश्चिम में जाकर योगा तो बन गया, किंतु उसे अंतरराष्ट्रीय दिवस का दर्जा दिलाने की सोच रामदेव ने ही पैदा की।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जब पूछा गया कि वर्ष का कौन सा दिन योग के नाम से अंतरराष्ट्रीय दिवस बन सकता है, तब प्रधानमंत्री ने बाबा रामदेव से जानकारी ली। रामदेव, आचार्य बालकृष्ण तथा पतंजलि योगपीठ के करीब 100 विद्वानों की टीम ने पूरे एक महीने तक खोजबीन कर 21 जून का दिन तय किया।

क्योंकि यह दिन सबसे लंबा होता है। 25 दिसंबर को भी पूरी दुनिया बड़ा दिन मानती है। वह दिन क्रिसमस के रूप में पहले ही विख्यात है। अत: बाबा द्वारा सुझाई गई 21 जून की तारीख ही अंतरराष्ट्रीय दिवस बन गई।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से विश्व रोग मुक्ति का सूत्रपात हो रहा है। योग और प्राणायाम के साथ-साथ धीरे-धीरे ध्यान और अष्टांग योग को बढ़ावा दिया जाएगा। वह दिन दूर नहीं जब न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया से रोग दूर भाग जाएंगे। योग को आयुर्वेद का साथ देकर दुनिया को महंगी दवाओं से मुक्ति दिलाई जाएगी। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस विश्व स्वास्थ्य की दिशा में मील का पत्थर बनेगा।

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