Friday, 12 June 2015

महेश भट्ट की अधूरी कहानी, समीक्षा पढ़कर ही देखिएगा पूरी फिल्म

जब-जब नायिका को राक्षसी प्रृवत्ति का पति मिलता है तब-तब उसकी जिंदगी में दैव गुणों से युक्त प्रेमी अवतार लेता है। फार्मूले का यह सिक्का हमारे सिनेमा ने खूब घिसा है। महेश भट्ट की लिखी हमारी अधूरी कहानी भी इसी घिसे सिक्के का एक और संस्करण है। 

मगर समस्या यह है कि कहानी का अंदाज अस्सी और नब्बे के दशक का है। लिखे हुए ड्राफ्ट से फिल्म ऐसी चिपकी है कि निर्देशक के लिए काम करने की आजादी का मौका नहीं छोड़ती। नतीजा यह कि आशिकी-2 और एक विलेन के डायरेक्टर मोहित सूरी की छाप फिल्म से गायब है। 

कहानी शादीशुदा महिला वसुधा (विद्या बालन) का दर्द दिखाती है, जिसे मुंबई में उसका पति हरि (राजकुमार राव) पांच साल पहले छोड़ कर लापता हो गया। वसुधा का नन्हा बेटा है। 

वह एक बड़े होटल में फूलों की सजावट का काम करती है। यहीं एक दिन सैकड़ों विशाल होटलों का मालिक आरव (इमरान हाशमी) काम के प्रति वसुधा के समपर्ण से प्रभावित होकर उसे दुबई स्थित अपने नए होटल में नौकरी का प्रस्ताव देता है। 

उधर, पुलिस वसुधा से पति का पता पूछ रही है। पुलिस के मुताबिक हरि बस्तर के घने जंगलों में जाकर ‘टैररिस्ट’ बन गया है। उसने पांच अमेरिकी टूरिस्टों की हत्या की है। वसुधा अंततः दुबई जाने का फैसला करती है।

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