Monday, 29 June 2015

...तो शिवसेना नहीं भुला पा रही ‘सियासी धोखा’

यूं तो शिवसेना केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार में साझीदार है, मगर सत्ता में सहयोगी होते हुए भी वह विपक्ष की भूमिका निभाती नजर आ रही है।

खासतौर से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए विभिन्न मुद्दों पर घिरी राज्य और केंद्र सरकार को निशाने पर लिया है।

चाहे ललित मोदी प्रकरण पर भाजपा और सरकार में अंदरूनी खींचतान का मामला हो या फिर पार्टी के बुजुर्गों का अपनों पर निशाना साधने का मामला, शिवसेना ने हर मौके पर भाजपा और सरकार को कटघरे में खड़ा कर परेशानी बढ़ाने की कोशिश की है। 

हालिया मामला विवादों में घिरे महाराष्ट्र सरकार के दो मंत्रियों पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े का है। शिवसेना ने इन दोनों ही मामलों में यह कह कर इन मंत्रियों के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया है कि दोनों ही मंत्री सूबे के मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे हैं। 

उल्लेखनीय है कि तावड़े जहां फर्जी डिग्री मामले में विवादों में घिरे हैं, वहीं पंकजा 206 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोपों पर विपक्ष के निशाने पर हैं। सत्ता के साथ रह कर अपनी ही सरकार पर लगातार निशाना साधने की शिवसेना की रणनीति को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की ओर से मिले ‘सियासी धोखे’ की टीस से जोड़ कर देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि भाजपा सीटों के समझौते पर सहमति न बनने के कारण अकेले चुनाव मैदान में उतर गई थी। चुनाव बाद सियासी मजबूरी में अपमान का घूंट पीते हुए शिवसेना को उसी भाजपा का समर्थन करना पड़ा था। 

आपातकाल के बहाने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का पीएम नरेंद्र मोदी पर परोक्ष हमले का मामला हो या ललित मोदी प्रकरण को ‘आस्तीन के सांप की साजिश’ करार देने का भाजपा सांसद कीर्ति आजाद का दावा। दोनों ही मामलों में शिवसेना ने अपने मुखपत्र के जरिए केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की।

सामना के संपादकीय में जहां आडवाणी से अपने कथन को विस्तार से समझाने का अनुरोध किया गया, वहीं ललित मोदी प्रकरण में कीर्ति के हवाले वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ अपनों की साजिश की ओर सीधा इशारा किया गया। शिवसेना ने पाकिस्तान के साथ रिश्तों, अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान की ओर से फायरिंग के मामले में भी केंद्र को निशाने पर रखा। 

अब जबकि महाराष्ट्र के दो मंत्री विवादों में घिरे हैं तब शिवसेना चुटकी लेने से नहीं चूक रही। दोनों मंत्रियों को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बता कर शिवसेना ने यह संदेश देने की कोशिश की कि इन्हें पार्टी नेतृत्व ही किनारे लगाने में जुटा है। 

सामना के संपादकीय में लिखा गया कि मंत्रियों पर आरोपों की बौछार ने सीएम की नाक में दम कर रखा है, शोध का विषय है कि एक साल में इतने पटाखे कैसे फूटने लगे? मंत्रियों को मुश्किल में लाने वाले नजदीकी लोग ही हो सकते हैं। क्या पंकजा, तावड़े पर अंकुश लगाने की राजनीति खेली गई?

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